काशी का ऐसा शिवालय, जहां कब्रिस्तान के बीचों-बीच विराजमान है ओंकारेश्वर महादेव
Sawan 2025 : धर्म नगरी काशी में महादेव कई रूपों में विराजमान हैं लेकिन यहां एक ऐसा शिवालय भी है, जो कब्रिस्तान के बीचों-बीच स्थित है। इस मंदिर को स्वंय ब्रह्मा जी ने स्थापित किया था। वैसे तो यहां हर दिन दर्शन-पूजन होता है लेकिन सावन मास में इनका महत्व और भी बढ़ जाता है। आइए जानते है काशी में यह मंदिर कहां स्थित है, इसका इतिहास और पौराणिक कथा के बारे में...
कहां स्थित है यह मंदिर?
वाराणसी के कोयला बाजार इलाके के पास यह प्राचीन ओमकारेश्वर महादेव (Omkareshwar Mahadev) का मंदिर स्थित है। मान्यता है कि यहां केवल दर्शन और पूजन करने से ही व्यक्ति को यज्ञ जैसा पुण्य फल प्राप्त होता है। मंदिर में प्रतिदिन भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन सावन में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।
ब्रह्मा जी की तपस्या से हुए थे भगवान शिव प्रकट
मंदिर के प्रमुख पुजारी के पुत्र अक्षय पांडेय बताते हैं कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने दस हजार वर्षों तक घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव तीन स्वरूपों- अकार, मकार और ओंकार में प्रकट हुए। इन तीन स्वरूपों में नाद और बिंदु लुप्त हो गए थे, पर आज भी यहां इन तीनों स्वरूपों के शिवलिंग विद्यमान हैं। कहा जाता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से आराधना करता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बैसाख कृष्ण चतुर्दशी का विशेष महत्व
अक्षय पांडेय के अनुसार, काशी खंड ग्रंथ में वर्णित है कि बैसाख मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ओंकारेश्वर के दर्शन करने मात्र से मनुष्य को गर्भ में दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। इस दिन देवताओं तक का यहां आगमन होता है। सावन के पहले सोमवार को विशेष रूप से यादव समाज के लोग पारंपरिक तरीके से बाबा का जलाभिषेक करने आते हैं।
शास्त्रों में भी दर्ज है इस मंदिर की महिमा
काशी खंड के 86वें अध्याय और शिव महापुराण में इस ओंकारेश्वर मंदिर का विस्तृत उल्लेख मिलता है। कहा गया है कि यहां पहले शिव पंचायत के पांच स्वरूप विद्यमान थे, लेकिन वर्तमान में तीन शिवलिंग—अकारेश्वर, ओंकारेश्वर और मकरेश्वर स्थापित हैं। यह मंदिर काशी के अविमुक्त क्षेत्र में स्थित है, जिसे अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान के दर्शन करने मात्र से पूरे ब्रह्मांड के शिव मंदिरों के दर्शन के समान फल प्राप्त होता है।
काशी का मस्तक: ओंकार खंड में 206 शिवलिंग
अक्षय बताते हैं कि यह मंदिर काशी के तीन खंडों में सबसे प्रमुख ‘मस्तक’ के रूप में जाना जाता है। ओंकार खंड में कुल 206 शिवलिंग स्थापित हैं, वहीं गौरी केदारेश्वर खंड में 105 और विश्वनाथ मंदिर खंड में 89 शिवलिंग हैं। इन तीनों खंडों की यात्रा को ‘अन्तर्ग्रही यात्रा’ कहा जाता है। ओंकारेश्वर को इस यात्रा का आरंभिक बिंदु यानी मस्तक माना जाता है, जिसके बाद मध्यमेश्वर (हृदय) और फिर गौरी केदारेश्वर (तीसरा खंड) आते हैं। यहां बाबा को बेलपत्र, दूध और जल अर्पित किया जाता है और खिचड़ी का भोग भी लगता है।
सौहार्द की मिसाल: मंदिर के बगल में स्थित है कब्रिस्तान
यह मंदिर एक खास सामाजिक संदेश भी देता है। अक्षय बताते हैं कि यह मंदिर कब्रिस्तान के ठीक बगल में स्थित है। पुराने समय में इसे लेकर विवाद हुए थे, लेकिन अब वर्षों से यहां शांति और सौहार्द बना हुआ है। मंदिर में श्रद्धालु आकर पूजा करते हैं और दूसरी ओर मुस्लिम समाज के लोग अपने परिजनों की कब्रों पर फातिहा पढ़ने आते हैं। पिछले दो दशकों से यहां किसी प्रकार की कोई असहज स्थिति नहीं बनी है। हालांकि मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग इस पर सार्वजनिक रूप से बोलने से परहेज करते हैं।