“दशकों की वैज्ञानिक यात्रा का परिणाम है एआई”- प्रो. अमित पात्रा, IIT-BHU निदेशक
एसएमएस वाराणसी में दो दिवसीय राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ‘नेक्स्टजेन एआई’ का शुभारंभ, देशभर के विशेषज्ञों ने एआई की पांच पीढ़ियों, भविष्य, नैतिकता और सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी पर रखे विचार
वाराणसी। स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़ (एसएमएस) वाराणसी के कंप्यूटर साइंस विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस “नेक्स्टजेन एआई: नवाचार, वैश्विक रुझान और सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी की खोज” का बुधवार को शुभारंभ हुआ। उद्घाटन सत्र में देश के शीर्ष तकनीकी संस्थानों, शोध संस्थानों और उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने एआई के ऐतिहासिक विकास, भविष्य की दिशा, सामाजिक प्रभाव और नैतिक चुनौतियों पर विस्तृत विमर्श किया। सम्मेलन में देशभर के विश्वविद्यालयों और संस्थानों से आए सैकड़ों प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
“अचानक नहीं, दशकों की वैज्ञानिक यात्रा का परिणाम है एआई”- प्रो. अमित पात्रा
मुख्य अतिथि प्रो. अमित पात्रा, निदेशक, IIT (BHU) ने एआई की शुरुआती अवधारणाओं से लेकर आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक की वैज्ञानिक यात्रा को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि एआई कोई रातों-रात विकसित हुई तकनीक नहीं है, बल्कि 1980 के दशक में ही इसकी वैचारिक संरचना और सिद्धांत मजबूत हो चुके थे।
उन्होंने बताया कि नीलसन की पुस्तक “प्रिंसिपल्स ऑफ इंटेलिजेंस” में नॉलेज रिप्रेज़ेंटेशन, लॉजिक-बेस्ड मॉडल्स और एक्सपर्ट सिस्टम्स की नींव रखी गई थी, लेकिन शुरुआती रूल-बेस्ड एआई डेटा और कंप्यूटिंग संसाधनों की कमी के कारण अपेक्षित सफलताएँ नहीं दे पाया।
प्रो. पात्रा के अनुसार आधुनिक एआई के तेजी से उभरने के तीन प्रमुख कारण हैं-
1.बिग डेटा का विस्फोट
2. जीपीयू आधारित अल्ट्रा फास्ट प्रोसेसिंग
3. उन्नत न्यूरल नेटवर्क आर्किटेक्चर
उन्होंने कहा- “एआई का सार यह नहीं कि मशीन मानव जैसी सोचती है या नहीं, बल्कि यह कि वह मानव-स्तरीय निर्णय प्रक्रिया का कितना सटीक अनुकरण कर सकती है।”
“एआई नौकरियाँ खत्म नहीं करता, काम करने के तरीकों को बदलता है”— चेतन पांडेय
विशिष्ट अतिथि चेतन पांडेय, उपाध्यक्ष – डेटा एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म, ईज़बज़ (पुणे) ने समाज में फैली एआई से जुड़ी गलतफहमियों पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर एआई के प्रति दो तरह की चरम धारणाएँ बनाई गई हैं- एआई सब कुछ संभाल लेगा और एआई नौकरियाँ खत्म कर देगा।
दोनों ही अवधारणाएँ वास्तविकता से दूर हैं।
उन्होंने कहा-“एआई किसी उपकरण की तरह ही सहायता करता है, पूरी व्यवस्था को नष्ट नहीं करता। यह मानव क्षमता को बढ़ाता है, उसे प्रतिस्थापित नहीं करता।”
उन्होंने साइबर सिक्योरिटी, वित्तीय धोखाधड़ी विश्लेषण, कस्टमर सपोर्ट और डेटा प्रोसेसिंग में एआई की बढ़ती भूमिका पर भी चर्चा की।
एआई की पाँच पीढ़ियाँ- एजेंटिक एआई और 2035 तक AGI का संकेत
विशिष्ट अतिथि नवीन मिश्रा, वाइस-प्रेसिडेंट (विश्लेषक), ग्रेटर इंडिया रिसर्च एंड एडवाइजरी सर्विसेज, गुरुग्राम ने एआई के विकास को पाँच पीढ़ियों में समझाया-
1. रूल-बेस्ड एआई
2. मशीन लर्निंग एआई
3. डीप लर्निंग
4. जनरेटिव एआई
5. एजेंटिक एआई
उन्होंने कहा कि आज हम उस युग में प्रवेश कर चुके हैं जहाँ एआई स्वयं निर्णय ले सकता है और अपने टार्गेट निर्धारित कर कार्यों को अंजाम दे सकता है।
उन्होंने कहा-“2035 तक एजीआई (एवरेज जनरल इंटेलिजेंस) के विकसित होने की पूरी संभावना है, जो मानव के औसत संज्ञानात्मक स्तर तक पहुँच सकती है।”
यह उद्योग, शिक्षा, प्रशासन और रोजगार क्षेत्र में बड़े बदलाव की ओर संकेत करता है।
एसएमएस वाराणसी के निदेशक ने बताया- क्यों ज़रूरी है ‘नेक्स्टजेन एआई’
एसएमएस वाराणसी के निदेशक प्रो. पी.एन. झा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि एआई अब सिर्फ वैज्ञानिक तकनीक नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन और पर्यावरणीय स्थिरता का प्रमुख आधार बन चुका है।
उन्होंने कहा-“नेक्स्टजेन एआई का उद्देश्य छात्रों, शोधार्थियों और उद्योग जगत को एक साझा मंच प्रदान करना है, जहाँ तकनीक के नैतिक, व्यावहारिक और इनोवेटिव आयामों पर चर्चा हो सके।”
दो दिवसीय सम्मेलन में छह तकनीकी सत्र
कॉन्फ्रेंस के दौरान कुल छह तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएंगे, जिनमें देशभर से आए शोधार्थी अपने शोधपत्र, केस स्टडी और तकनीकी प्रयोग प्रस्तुत करेंगे।
उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. भावना सिंह ने किया, जबकि धन्यवाद प्रस्ताव प्रो. शंभूशरण श्रीवास्तव ने दिया।
इस अवसर पर निदेशक प्रो. पी.एन. झा, कुलसचिव संजय गुप्ता, प्रो. कमलशील मिश्र, प्रो. आनंद प्रकाश दुबे, प्रो. राम गोपाल गुप्ता, सुशील कुमार, डॉ. संदीप कुमार गौतम, विभिन्न विभागों के संकाय सदस्य, शोधार्थी और छात्र मौजूद रहे।