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शादी में दखल पर पत्नी मांग सकती है हर्जाना: दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला, पति की प्रेमिका पर 4 करोड़ का दावा

Alienation of Affection क्या है? दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों माना सिविल कोर्ट में सुनवाई योग्य मामला
 

 

पति की कंपनी की विश्लेषक प्रेमिका पर 4 करोड़ हर्जाने का दावा

फैमिली कोर्ट और सिविल कोर्ट की कार्यवाही में फर्क समझाया

निजी स्वतंत्रता और वैवाहिक अधिकारों पर कोर्ट की टिप्पणी

दिल्ली, भदैनी मिरर। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि अगर किसी तीसरे व्यक्ति ने जानबूझकर वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप कर रिश्ते को नुकसान पहुंचाया है, तो पीड़ित जीवनसाथी उस व्यक्ति से हर्जाना मांग सकता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सिविल कोर्ट में दावा किया जा सकता है, भले ही फैमिली कोर्ट में तलाक या अन्य पारिवारिक कार्यवाही लंबित हो।


पति की प्रेमिका से मांगा 4 करोड़ का हर्जाना

मामला उस समय चर्चा में आया जब एक पत्नी ने अपने पति की कथित प्रेमिका के खिलाफ 'एलियनएशन ऑफ अफेक्शन' (Alienation of Affection) के तहत 4 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा। आरोप है कि पति की कंपनी में बतौर विश्लेषक (Analyst) कार्यरत महिला ने पति के शादीशुदा होने की जानकारी के बावजूद उसके साथ संबंध बनाए, जिससे वैवाहिक जीवन टूटने की कगार पर पहुंच गया।

क्या है 'एलियनएशन ऑफ अफेक्शन'?

'एलियनएशन ऑफ अफेक्शन' एक सिविल टॉर्ट (Civil Tort) है, जिसका अर्थ है — किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा किए गए गलत हस्तक्षेप से पति-पत्नी के बीच प्यार, स्नेह और साथ छिन जाना। यह अवधारणा एंग्लो-अमेरिकन कॉमन लॉ से आई है, जिसे भारत में किसी विशेष कानून में संहिताबद्ध नहीं किया गया है, लेकिन अदालतों में ऐसे दावे किए जा सकते हैं।

कोर्ट की दलीलें और आदेश

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि भारत के वैवाहिक कानून जैसे हिंदू विवाह अधिनियम तीसरे पक्ष के खिलाफ कोई कानूनी उपचार (Remedy) नहीं देते। लेकिन, अगर किसी तीसरे व्यक्ति की वजह से वैवाहिक रिश्ता प्रभावित होता है, तो आर्थिक मुआवजे का दावा सिविल कोर्ट में किया जा सकता है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि फैमिली कोर्ट और सिविल कोर्ट की कार्यवाहियां एक-दूसरे की जगह नहीं लेतीं। तलाक का केस चलते रहने के बावजूद हर्जाने के लिए अलग से सिविल केस किया जा सकता है।

स्वतंत्रता और देनदारी पर कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने कहा, "व्यक्तिगत स्वतंत्रता में रिश्ते तोड़ने या बदलने का अधिकार शामिल है, यह अपराध नहीं है। लेकिन, अगर तीसरा व्यक्ति जानबूझकर गलत हस्तक्षेप करता है तो इसके नागरिक परिणाम (Civil Consequences) हो सकते हैं।"
जस्टिस कौरव ने अमेरिकी न्यायविद वेस्ली न्यूकॉम्ब होहफेल्ड का हवाला देते हुए कहा कि यदि वैवाहिक साथ और साहचर्य (Marital Consortium) एक संरक्षित अधिकार है, तो तीसरे पक्ष का यह कर्तव्य है कि वह इसमें जानबूझकर हस्तक्षेप न करे।

मामला क्यों है अहम?

यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में एक नया दृष्टिकोण देता है, जहां पति-पत्नी के अधिकारों के उल्लंघन पर तीसरे पक्ष की कानूनी जवाबदेही तय हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भविष्य में वैवाहिक विवादों और उनसे जुड़े हर्जाने के दावों में नए आयाम जुड़ेंगे।