साहित्य के जानकार व विश्वनाथ मंदिर के महंत पं. रामशंकर त्रिपाठी का निधन, शोक की लहर...
वाराणसी,भदैनी मिरर। काशी विश्वनाथ मंदिर के चार महंत परिवारों में से एक के मुखिया पं. रामशंकर त्रिपाठी बाबा दरबार की घंट ध्वनि सुनने की आस लिए संसार से विदा हो गए। 97 वर्ष की उम्र में गुरुवार को पूर्वाह्न गुरुबाग स्थित अपने नवीन आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। बाल्यावस्था में होश संभालने से लेकर विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए करीब डेढ़ साल पहले मंदिर के बगल वाला उनका भवन लिए जाने तक वह वहीं रहे। विश्वनाथ मंदिर में नित्य दर्शन का क्रम बीते करीब डेढ़ साल से बाधित होने के बाद से वह सदमे में थे। गुरुवार की सुबह भी उन्होंने बाबा का दर्शन करने और घंट ध्वनि सुनने की इच्छा जाहिर की थी। इसके बाद पूर्वाह्न नौ बजे उनकी तबीयत अधिक बिगड़ गई। उन्हें महमूरगंज स्थित एक निजी चिकित्सालय में ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर हुआ। उनके ज्येष्ठ पुत्र ज्योतिशंकर त्रिपाठी ने उन्हें मुखाग्नि दी। वह अपने पीछे पत्नी, पांच पुत्र और एक पुत्री छोड़ गए हैं।
पं. रामशंकर त्रिपाठी के सबसे बड़े पुत्र पं. ज्योतिशंकर त्रिपाठी ने बताया कि शृंगेरीपीठ के जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामी अभिनव विद्यातीर्थ, द्वारका पीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामी अभिनव सच्चिदानंद महाराज, कांचीपीठ के जगद्गुरुशंकराचार्य चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती जैसी हस्तियां उनसे सनातन संस्कृति के विभिन्न प्रकरणों पर सलाह किया करती थीं। पं. रामशंकर त्रिपाठी न सिर्फ महामना पं. मदन मोहन मालवीय के कृपा पात्र थे अपितु पं. गोपीनाथ कविराज, सर्वपल्ली राधाकृष्णन,राय आनंदकृष्ण दास, डा.वेणीशंकर झा, डा.कालूलाल श्रीमाली, डा. बलराम पांडेय जैसे विद्वानों के अति प्रिय थे। डा. राजेंद्र प्रसाद, पं. लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, सितारवादक पं. रविशंकर और संगीतकार जार्ज हैरिसर भी उनकी विद्वता के कायल थे। बनारस और काशी विश्वनाथ मंदिर पर कई पुस्तकें लिखने वाले पं. रामशंकर त्रिपाठी नेपाल नरेश वीरेंद्र वीर विक्रम शाहदेव के राज्याभिषेक में काशी के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक हुए थे। विश्वनाथ मंदिर महंत परिवार के अध्यक्ष डा. कुलपति तिवारी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनके निधन से हमने हिंदी, अग्रेजी, संस्कृत ही नहीं उर्दू और फारसी साहित्य का महान जानकार खो दिया है। उनके निधन से विद्वता के एक युग का अवसान हो गया।