नजीर: गरीब बेसहारों के सहारा बने बनारस के अमन कबीर

नजीर: गरीब बेसहारों के सहारा बने बनारस के अमन कबीर

घर को ही बना दिया कबीर की कुटिया, दूसरों के प्रति समर्पण को ही बताई सफलता

वाराणसी/भदैनी मिरर। कहते हैं जिनका कोई नहीं होता उनका भगवान होता है और जब भी जीवन के मुश्किल घड़ी में हमारा साथ कोई नही देता तब ईश्वर किसी न किसी रूप में हमारी मदद करने के लिए आते हैं। ऐसे ही वाराणसी में भी रह रहे बीमार, गरीब बेसहारों का सहारा बनने के लिए ईश्वर स्वयं अमन कबीर के रूप में यहां मौजूद हैं। खुद के घर को कबीर कुटिया बना कर मानवता की सेवा करने वाले अमन यादव के जज्बे को सभी सलाम करते हैं। पूरे शहर में जहां कहीं भी कोई गरीब बेसहारा बीमार पड़ा होता है अमन वहां झट से पहुंचकर उसे अपनी सेवा देते हैं।
सब सबने ठुकराया तो अमन ने अपनाया
अमन की सेवा इस कोरोना काल में भी अनवरत जारी है। कोरोना काल के चलते जब अपने ही परिजनों का शव ठुकराने लगे तो अमन ने उन्हें अपनाया। जब शव को लोग अस्पताल या घाट पर ही छोड़ कर चले जा रहे थे तब अमन उनका अंतिम संस्कार करते थे। इसके साथ ही आपातकाल में किसी को ब्लड की जरूरत हो तो ब्लड दे रहे थे। यही नही, किसी घायल पशुओं की भी मदद कर उनका इलाज करवा रहे थे। वह हर प्रकार लोगों की मदद कर रहे थे। लॉकडाउन के चलते  किसी भूखे सो रहे लोगों में खाना पहुँचाने का काम भी कर रहे थे।
एक रुपया अभियान काफी लोकप्रिय

अमन कबीर का एक रुपया अभियान भी काफी लोकप्रिय है। सच है समाजसेवा के लिए भी धन की आवश्यकता पड़ती है। अमन कबीर ने एक रुपया अभियान शुरु किया। अमन का कहना है कि महज एक रुपये तो कोई भी दे देता है, एक रुपया देने वाले के लिए भले ही कम हो मगर हमारे लिए वह महान दानदाता है, एक-एक रुपये करके एम्बुलेन्स का तेल आ जाता है, जिससे जनता की फौरी मदद कर पाता हूँ। अमन कहते है कि बहुत से बड़े लोगों ने अपने शक्ति के मुताबिक हजारों में भी मदद की है।
बम ब्लास्ट में घायलों को देखकर शुरु किया समाजसेवा
दारनगर निवासी राजू यादव के पुत्र अमन यादव उर्फ कबीर की कहानी बेहद खास है। वर्ष 2007 में अमन बनारस के अग्रसेन महाजनी में कक्षा सात में पढ़ते थे।23 नवम्बर 2007 को बनारस के कचहरी परिसर में बम ब्लास्ट हो गया था। इसी दिन अमन इंटरवल में ही स्कूल से भाग कर मालवीय मार्केट पर पहुंचा था यही पर एक न्यूज चैनल में अमन को बम विस्फोट होने की जानकारी मिली। इसके बाद वह सीधे शिवप्रसाद गुप्त मंडलीय अस्पताल पहुंचे, जहां पर विस्फोट में घायल हुए लोगों को इलाज के लिए लाया गया था। अमन भी घायलों की मदद करने लगा। पिता ने न्यूज चैनल में अमन को यह सब करते हुए देख लिया। इसके बाद जब वह घर पहुंचा तो पिता ने समझाया कि अभी पढने की उम्र है इसलिए पढ़ाई पर ध्यान दे। लेकिन पिता के लाख समझाने के बाबजूद अमन दूसरे दिन  फिर अस्पताल जाकर घायलों का हाल लेने लगे थे। घायलों को देखकर ही अमन ने समाजसेवा की कसम खाई और आज 24 साल के हो चुके अमन ने अपनी राह नहीं बदली है। 
समाजसेवा के लिए ठुकराया लाखों का पैकेज

अमन ने लावारियों का दर्द बांट कर जीवन में जो सफलता पायी है वह अन्य लोगों के लिए नजीर बन गयी है। अमन बताते हैं कि उन्हें समाजसेवा के इस कार्य में इतना सुकून और शांति मिलती है कि वह दूसरे किसी काम पर न तो ध्यान देते हैं न ही उन्हें पैसे का कोई लालच है इसलिए लोगों ने लाखों का पैकेज देने का भी ऑफर दिया था लेकिन लेकिन अमन ने उन्हें साफ मना कर दिया और समाजसेवा में निःस्वार्थ जूटे रहे। यही कारण है कि आज अमन यादव से वह लोगों के बीच अमन कबीर बन चुके हैं।
खुद के घर को ही बना दिया कबीर कुटिया
लावारिस मरीजों की सेवा करने के साथ ही अमन भटके हुए लोगों को उनके परिजनों से मिलाने का प्रयास भी करते हैं । सोशल मीडिया के सहारे वह भटके हुए लोगों के परिजनों तक पहंचाते है। इसके लिए उन्होंने अपने घर के ही एक कमरे को कबीर कुटिया बना दी है, जिसमें भटके हुए लोगों की रहने की व्यवस्था कर रखी हैं।  जब उन भटके हुए लोगों के परिजन आ जाते हैं तो उनके साथ उन्हें भेज देते है। अमन का कहना है कि दूसरों के लिए मेरा समर्पण ही मेरी सफलता है। लावरिस मरीजों की सेवा करने पर लोगों से इतना प्यार मिलता है कि इसे देख कर दूसरे लोग भी लावारिस मरीजों की सेवा करने में जुट गये हैं यह देख कर मुझे बहुत खुशी मिलती है।